गढ़वाली में भी हिंदी से ही मिलते जुलते संस्कृत मूल के विशेषण थोड़े परिवर्तन के साथ बहुतायत में मिलते हैं . अधिकतर पुल्लिंग के लिए अंत में "उ /ु " की मात्रा या उच्चारण लगता है तथा स्त्रीलिंग के लिए "इ/ि " मात्रा/उच्चारण प्रयुक्त होता है . उदारहणतः
हिंदी गढ़वाली
अच्छा / अच्छी अच्छु/अच्छि(अधिक प्रचलित है भलु/भलि )
बुरा /बुरी बुरु/बुरि (अधिक प्रचलित है निकमु/निकमि)
लंबा/लंबी लम्बू/लंबि
छोटा/छोटी छ्वट्टु/छ्वट्टी
पुराना/पुरानी पुरऽणु/पुरऽणि
नया/नयी नयु ,/नै
जिन्दा/जिन्दी जिंदु/जिन्दि
मरा/मरी म्वर्यू/म्वरीं
कच्चा/कच्ची काचु/काचि
मोटा/मोटी म्वाटु/म्वाटि
पतला/पतली पतलू/पतलि
बड़ा /बड़ी बड़ु/बड़ि
नन्ह/नन्हि छोटा/छोटी
ज्वान युवा
दानु/दानि बुजुर्ग
लेकिन इनसे इतर कई ऐसे विशेषण हैं जो कि भले ही हिंदी से कुछ मेल खाते हों पर उनका अर्थ कुछ और होता है. कुछ शब्द तो संस्कृत उत्पत्ति के ही नहीं हैं और हिंदी से काफी भिन्न हैं या वे उर्दू , फ़ारसी जैसी किसी अन्य भाषा से आये हैं और ओनके रूप में काफी परिवर्तन हों चुका है उदाहरणतः -
भंडी/बहोत : बहुत
स्वाणु/स्वाणि : सुंदर
रौतेलु/रौतेली : आकर्षक
मयालु : प्रेमपूर्ण
बव्वा : आँवारा
लाटु/लाटी : मंदबुद्धि
बौल्या (समान रूप ) : पागल,दीवाना
हिंदी गढ़वाली
अच्छा / अच्छी अच्छु/अच्छि(अधिक प्रचलित है भलु/भलि )
बुरा /बुरी बुरु/बुरि (अधिक प्रचलित है निकमु/निकमि)
लंबा/लंबी लम्बू/लंबि
छोटा/छोटी छ्वट्टु/छ्वट्टी
पुराना/पुरानी पुरऽणु/पुरऽणि
नया/नयी नयु ,/नै
जिन्दा/जिन्दी जिंदु/जिन्दि
मरा/मरी म्वर्यू/म्वरीं
कच्चा/कच्ची काचु/काचि
मोटा/मोटी म्वाटु/म्वाटि
पतला/पतली पतलू/पतलि
बड़ा /बड़ी बड़ु/बड़ि
नन्ह/नन्हि छोटा/छोटी
ज्वान युवा
दानु/दानि बुजुर्ग
लेकिन इनसे इतर कई ऐसे विशेषण हैं जो कि भले ही हिंदी से कुछ मेल खाते हों पर उनका अर्थ कुछ और होता है. कुछ शब्द तो संस्कृत उत्पत्ति के ही नहीं हैं और हिंदी से काफी भिन्न हैं या वे उर्दू , फ़ारसी जैसी किसी अन्य भाषा से आये हैं और ओनके रूप में काफी परिवर्तन हों चुका है उदाहरणतः -
भंडी/बहोत : बहुत
स्वाणु/स्वाणि : सुंदर
रौतेलु/रौतेली : आकर्षक
मयालु : प्रेमपूर्ण
बव्वा : आँवारा
लाटु/लाटी : मंदबुद्धि
बौल्या (समान रूप ) : पागल,दीवाना
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