सोमवार, 29 अगस्त 2011

हिंवाला को ऊँचा डान



यह देश भक्ति के रंग में  डूबा  गीत प्रसिद्ध कुमाऊँनी  गायक श्री गोपाल बाबू गोस्वामी जी का है ,इसमें उन्होने उत्तराखंड के दोनों क्षेत्रों गढ़वाल और कुमाऊँ की विशेषता प्रदर्शोत की है । गीत के बोल कुमाऊँनी में हैं । 

 जय भारत जय भारती !!
मेरा देश महान !!

देवभूमि उत्तरांचल धरती शत शत तुझे प्रणाम !!
(यह पूरा हिंदी में है )
(कुमावनी के बोल :)

हिंवाला को ऊंचा डाना प्यारो मेरो गों !-2 
हिमालय की ऊँची पर्वत शिखाएं में बसा मेरा प्यारा सा गाँव

छबीलों गढ़वाल मेरो रंगीलों कुमौ !-2 
छबीला गढ़वाल मेरा ,रंगीला कुमाऊ  

हिंवाला को ....हिंवाला को ... 
हिमालय की ..हिमालय की .. 


यो भूमि जन्मा मेरा मधी सिंह मलेथा -2 
इस भूमि में मेरे वीर माधो सिंह मलेथा* जन्मे थे  

गबर ,चंदर सिंह आज़ादी क पैगा -2  
गब्बर सिंह ,चंदर सिंह** जैसे बहादुर आज़ादी के  सैनिक थे  

मिटायों ज़ुलम कैगों ,दिखायो उज्यल -2 
इन सभी ने अत्याचार समाप्त करवाया और उजाला दिखाया  

छबीलों गढ़वाल मेरो रंगीलों कुमौ !-2 
छबीला गढ़वाल मेरा ,रंगीला कुमाऊ  

हिंवाला को ..... हिंवाला को ...  
हिमालय की  ..हिमालय की .. 



जाग नाथ भाग नाथ बद्रि केदारा -2 
जागनाथ(जागेश्वर),भाग्नाथ(बागेश्वर)** सरीखे पूज्य स्थल यहाँ हैं  


चम चमा चमकी मेरी शिवे की हिंवाला - 2 
मेरे शिब प्रभु का हिमालय चम् चम् चमकता रहता है ..


हिंवाला को ऊंचा डाना प्यारो मेरो गों !-2 
हिमालय की ऊँची पर्वत शिखाएं में बसा मेरा प्यारा सा गाँव


छबीलो गढ़वाल मेरो रंगीलों कुमौ !-2 
छबीला गढ़वाल मेरा ,रंगीला कुमाऊ


हिंवाला को .... हिंवाला को .... 
हिमालय की  ..हिमालय की




गोरी आंखो कारी देबा द्वि भाई रमोला -2 
ये सभी यहाँ के इष्ट देव हैं भूमि गौरिया(गोलू देवता) ,रमोला ,

हिट्जो भूमिया देबा यों भूमि जनामा -2 
भूमि गौरिया(गोलू देवता) इसी भूमि के हैं
जनामी औतारी नन्दा दे बार कल्याणों -2 
जन्म देने वाली नंदा देवी हमें आशीर्वाद देती है



छबीलों गढ़वाल मेरो रंगेलों कुमौ !-2 
छबीला गढ़वाल मेरा ,रंगीला कुमाऊ

हिंवाला को .... हिंवाला को ...
हिमालय की  ..हिमालय की



लाखों  क्रांतिकारी पैगा यो भूमि जनामा । 
कई क्रांतिकारियों को इस भूमि ने जन्म दिया है .


सालमा सतीया पैगा नी भूली सके ना 
सालम और सल्ट ^ की घटनाओ को हम कभी नहीं भूल सकते


देश की आज़ादी लिजी जगायो मुछयल -2 
इन सभी क्रांतिकारियों ने देश की आज़ादी की खातिर मशाल जलाई थी


बीरों की जनम भूमि देबायों कुमौ - 
यह देवभूमि कुमाऊ वीरों की जन्मभूमि है
बीरों की जनम भूमि गढ़ और कुमौ 
यह गढ़वाल और कुमाऊ वीरों की जन्मभूमि है
.
हिंवाला को .... हिंवाला को ...
हिमालय की ..हिमालय की ..




हिंवाला को ऊंचा डाना प्यारो मेरो गों !-2 
हिमालय की ऊँची पर्वत शिखाएं में बसा मेरा प्यारा सा गाँव


छबीलों गढ़वाल मेरो रंगीलों कुमौ !-1-2-3-4-5 
छबीला गढ़वाल मेरा ,रंगीला कुमाऊ


*माधो सिंह गढ़वाल के “मलेथा” गाँव के एक साहसी पुरुष थे जिन्होंने अकेले ही एक पहाड़ को चीर कर अपने गाँव तक नहर खोदने का अविश्वसनीय कार्य किया था . http://www.apnauttarakhand.com/madho-singh-bhandari-maleta/
**ये भारतीय ब्रिटिश फ़ौज के वीर सिपाही थे ,गबर सिंह जी को विश्व युद्ध में अद्वितीय शौर्य का परिचय देने के लिए “विक्टोरिया क्रोस ” से भी सम्मानित किया गया था . http://en.wikipedia.org/wiki/Gabar_Singh_Negi
^सल्ट अल्मोड़ा जिले का एक नगर है जिसे “कुली बेगार ” प्रथा के विरोध के केन्द्र के रूप में “सल्ट क्रांति ” के  लिए जाना जाता है http://www.merapahad.com/salt-kranti-an-important-chapter-of-indian-freedom-movement/


इस गीत की वीडियो यहाँ देखें ::

http://www.youtube.com/watch?v=7fEX4VXWQOw&playnext=1&list=PL630AFA00B299A2C6





शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

कुमाँऊ का संक्षिप्त इतिहास

कुमाँऊ शब्द की उत्पत्ति कुर्मांचल से हुई है जिसका मतलब है कुर्मावतार (भगवान विष्णु का कछुआ रूपी अवतार) की धरती। कुमाँऊ मध्य हिमालय में स्थित है, इसके उत्तर में हिमालय, पूर्व में काली नदी, पश्चिम में गढ‌वाल और दक्षिण में मैदानी भाग। इस क्षेत्र में मुख्यतया ‘कत्यूरी’ और ‘चंद’ राजवंश के वंशजों द्धारा राज्य किया गया। उन्होंने इस क्षेत्र में कई मंदिरों का भी निर्माण किया जो आजकल सैलानियों (टूरिस्ट) के आकर्षण का केन्द्र भी हैं। कुमाँऊ का पूर्व मध्ययुगीन इतिहास ‘कत्यूरी’ राजवंश का इतिहास ही है, जिन्होंने 7 वीं से 11 वीं शताब्दी तक राज्य किया। इनका राज्य कुमाँऊ, गढ‌वाल और पश्चिम नेपाल तक फैला हुआ था। अल्मोड‌ा शहर के नजदीक स्थित खुबसूरत जगह बैजनाथ इनकी राजधानी और कला का मुख्य केन्द्र था। इनके द्धारा भारी पत्थरों से निर्माण करवाये गये मंदिर वास्तुशिल्पीय कारीगरी की बेजोड‌ मिसाल थे। इन मंदिरों में से प्रमुख है ‘कटारमल का सूर्य मंदिर’ (अल्मोडा शहर के ठीक सामने, पूर्व के ओर की पहाड‌ी पर स्थित)। 900 साल पूराना ये मंदिर अस्त होते ‘कत्यूरी’ साम्राज्य के वक्त बनवाया गया था।

कुमाँऊ में ‘कत्यूरी’ साम्राज्य के बाद पिथौरागढ‌ के ‘चंद’ राजवंश का प्रभाव रहा। जागेश्वर का प्रसिद्ध शिव मंदिर इन्ही के द्धारा बनवाया गया था, इसकी परिधि में छोटे बड‌े कुल मिलाकर 164 मंदिर हैं।

ऐसा माना गया है कि ‘कोल’ शायद कुमाँऊ के मूल निवासी थे, द्रविडों से हारे जाने पर उनका कोई एक समुदाय बहुत पहले कुमाँऊ आकर बस गया। आज भी कुमाँऊ के शिल्पकार उन्हीं ‘कोल’ समुदाय के वंशज माने जाते हैं। बाद में ‘खस’ समुदाय के काफी लोग मध्य एशिया से आकर यहाँ के बहुत हिस्सों में बस गये। कुमाँऊ की ज्यादातर जनसंख्या इन्हीं ‘खस’ समुदाय की वंशज मानी जाती है। ऐसी कहावत है कि बाद में ‘कोल’ समुदाय के लोगों ने ‘खस’ समुदाय के सामने आत्मसमर्फण कर इनकी संस्कृति और रिवाज अपनाना शुरू कर दिया होगा। ‘खस’ समुदाय के बाद कुमाँऊ में ‘वैदिक आर्य’ समुदाय का आगमन हुआ। स्थानीय राजवंशों के इतिहास की शुरूआत के साथ ही यहाँ के ज्यादातर निवासी भारत के तमाम अलग अलग हिस्सों से आये ‘सवर्ण या ऊंची जात’ से प्रभावित होने लगे। आज के कुमाँऊ में ब्राह्मण, राजपूत, शिल्पकार, शाह (कभी अलग वर्ण माना जाता था) सभी जाति या वर्ण के लोग इसका हिस्सा हैं। संक्षेप में, कुमाँऊ को जानने के लिये हमेशा निम्न जातियों या समुदाय का उल्लेख किया जायेगा – शोक्य या शोक, बंराजिस, थारू, बोक्स, शिल्पकार, सवर्ण, गोरखा, मुस्लिम, यूरोपियन (औपनिवेशिक युग के समय), बंगाली, पंजाबी (विभाजन के बाद आये) और तिब्बती (सन् 1960 के बाद)।

6वीं शताब्दी (ए.डी) से पहले - क्यूनीनदास या कूनीनदास
6वीं शताब्दी (ए.डी) के दौरान - खस, नंद और मौर्य। ऐसी मान्यता है बिंदुसार के शासन के वक्त खस समुदाय द्धारा की गई बगावत अशोक द्धारा दबा दी गई। उस वक्त पुरूष प्रधान शासन माना जाता है। 633-643 ए.डी के दौरान यूवान च्वांग (ह्वेन-टीसेंग) के कुमाँऊ के कुछ हिस्सों का भ्रमण किया और उसने स्त्री राज्य का भी उल्लेख किया। ऐसा माना जाता है कि यह गोविशाण (आज का काशीपूर) क्षेत्र रहा होगा। कुमाँऊ के कुछ हिस्सों में उस वक्त ‘पौरवों’ ने भी शासन किया होगा।
6वी से 12वी शताब्दी (ए.डी) - इस दौरान कत्यूरी वंश ने सारे कुमाँऊ में शासन किया। 1191 और 1223 के दौरान दोती (पश्चिम नेपाल) के मल्ल राजवंश के अशोका मल्ल और क्रचल्ला देव ने कुमाँऊ में आक्रमण किया। कत्यूरी वंश छोटी छोटी रियासतों में सीमित होकर रह गया।
12वी शताब्दी (ए.डी) से - चंद वंश के शासन की शुरूआत। चंद राजवंश ने पाली, अस्कोट, बारामंडल, सुई, दोती, कत्यूर द्धवाराहाट, गंगोलीहाट, लाखनपुर रियासतों में अधिकार कर अपने राज्य में मिला ली।
1261 – 1275 - थोहर चंद
1344 – 1374 या 1360 – 1378 - अभय चंद। कुछ ताम्रपत्र मिले जो चंद वंश के अलग अलग शासकों से संबन्धित थे लेकिन शासकों के नाम का पता नही चल पाया।
1374 – 1419 (ए.डी) - गरूड़ ज्ञानचंद
1437 – 1450 (ए.डी) - भारती चंद
1565 – 1597 (ए.डी) - रूद्र चंद
1597 – 1621 (ए.डी) - लक्ष्मी चंद। चंद शासकों के दौरान नये शहरों की स्थापना और इनका विकास भी हुआ जैसे रूद्रपुर, बाजपुर, काशीपुर।
1779 – 1786 (ए.डी) - कुमाँऊ के परमार राजकुमार, प्रद्धयुमन शाह ने प्रद्धयुमन चंद के नाम से राज्य किया और अंततः गोरखाओं के साथ खुरबुरा (देहरादून) के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।
1788 – 1790 (ए.डी) - महेन्द्र सिंह चंद, ऐसा माना जाता है कि यह चंद वंश का अंतिम शासक था। जिसने राजबुंगा (चंपावत) से शासन किया लेकिन बाद में अल्मोड‌ा से किया।
1790 – 1815 (ए.डी) - कुमाँउ में गोरखाओं का राज्य रहा। गोरखाओं के निर्दयता और जुल्म से भरपूर शासन में चंद वंश के शासकों का पूरा ही नाश हो गया।
1814 – 1815 (ए.डी) - नेपाल युद्ध। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने गोरखाओं को पराजित कर कुमाऊँ में राज्य करना शुरू किया।

यदपि ब्रिटिश राज्य गोरखाओं (जिसको गोरख्योल कहा जाता था) से कम निर्दयता पूर्ण और बेहतर था लेकिन फिर भी ये विदेशी राज्य था। लेकिन फिर भी ब्रिटिश राज्य के दौरान ही कुमाँऊ में प्रगति की शुरूआत भी हुई। इसके बाद, कुमाँऊ में भी लोग विदेशी राज्य के खिलाफ उठ खड‌े हुए।