बुधवार, 13 जुलाई 2011

चम-चम चम्म चमकि (नरेन्द्र सिंह नेगी जी को गीत )




नरेन्द्र सिंह नेगी जी उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के एक जाने माने लोक गायक हैं ,उन्होंने कई मर्मस्पशी गढ़वाली गीत लिखे हैं और उन्हें स्वरों में भी पिरोया है .प्रस्तुतु गीत भी उन्हीका जिसमें उन्होंने सूर्य की अनुपम छटा का वर्णन करते हुए पहाड़ी जन जीवन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव और उससे जुडी घटनाओं का भी सुंदर प्रस्तुतीकरण किया है  :



चम चमा चम, चम-चम चम-चम चम्म चमकि, चमकि चम्म चमकि घाम कांठ्यूं मां
हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि, हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि 
बणि गैनि… बणि गैनि…
हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि, हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि 

शिव का कैलाशु ग्याइ पैलि-पैलि घाम,
शिव का कैलाशु ग्याइ पैलि -पैलि घाम 
सेवा लगौणुं आइ बदरी का धाम.. बे..
बदरी का धाम बे बदरी का धाम 

सर्र फैलि, फैलि, सर्र फैलि- घाम डांडों मां
पौलि पन्छि डांड़ि डाल बौटि बिजि गैनि, पौलि पन्छि डांड़ि डाल बौटि बिजि गैनि  

'बिजि गैनि… बिजि गैनि
हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि, हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि

ठण्डु -माठु चड़ि घाम फुलुं की पाख्युं मां
ठण्डु-माठु चड़ि घाम फुलुं की पाख्युं मां 
लागि कुतगैलि तौंकी नागि काख्युं मां …बे…
नागि काख्युं मां बे नागि काख्युं मां 
खिच्च हैसनि, हैसनि, खिच्च हैसनि फूल डाल्यूं मां
भौंरा पौतेला रंगमत बणी गैनि, भौंरा पौतेला रंगमत बणी गैनि 

बणी गैनि.. बणी गैनि
हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि, हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि

डांड़ि कांठि बिजालि पौंचि घाम गौं मां
डांड़ि कांठि बिजालि पौंचि घाम गौं मां 
सुनिन्द पौड़ि छे बेटि ब्वारि ड्यरौं मां.. बे…
ब्वारि ड्यरौं मां बे ब्वारि ड्यरौं मां..
झम्म झौल, झौल, झम्म झौल लागि आख्यूं मां
मायादार आख्यूं का सुपिन्या उड़ि गैनि, मायादार आख्यूं का सुपिन्या उड़ि गैनि 
उड़ि गैनि..उड़ि गैनि
हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि, हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि

छुयुं मां बिसै गैनि पन्देरु मां पन्देनि
छुयुं मां बिसै गैनि पन्देरु मां पन्देनि 
भांणि पुरि गैनि तौकि छुईं नी पुरैनि ..बे…
छुईं नी पुरैनि बे छुईं नी पुरैनि 
खल्ल खतै, खतै, खल्ल खतै घाम मुखुड़्युं मां
बिजादिनि मुखड़ि सुना कि बणि गैनि, बिजादिनि मुखड़ि सुना कि बणि गैनि 
बणि गैनि..बणि गैनि
हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि, हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि 

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शनिवार, 9 जुलाई 2011

स्थानों के नामों का कुमाऊँनी संस्करण

वैसे तो किसी भी स्थान/शहर/नगर का अपना एक मानक नाम होता है परन्तु उसके साथ ही कुछ अलग अलग क्षेत्रों में उसी स्थान विशेष के लिए थोड़े भिन्न नाम होते हैं उदहारणतः पूर्वांचल वाले वाराणसी को 'बनारस ' कह कर ही बुलाएँगे और लखनऊ वाले दिल्ली को 'देहली ' कह कर ..ऐसे ही क्षेत्रीय रूप कुमाऊँनी में भी यहाँ के शहरों के लिए मिलते हैं और देश के कुछ बड़े शहरों के लिए भी .आइये कुछ उदाहरण देखते हैं :



गैर उत्तराखंडी नगर :


मुंबई/बम्बई : बौम्बै
चेन्नई/मद्रास : मद्रास
लखनऊ : लखनौ
कोलकाता : कलकत्ता




कुमाऊँनी (उत्तराखंडी) नगर :

अल्मोड़ा : अल्माड़

बागेश्वर : बागश्यर
हल्द्वानी : हल्द्वाणि
रानीखेत : राणिखेत
भवाली : भवालि
सेराघाट : स्यारघाट
मासी- चौखुटिया : मासि-चौखुटि
धारचूला : धारचुल
कौसानी : कौसाणि

कुमाऊँनी में प्रश्नवाचक वाक्य

कुमाऊँनी में वैसे तो कुछ प्रचिलित शब्द है प्रश्नवाचकों के तौर पर उपयोग होने के लिए ,पर फिर भी उनमें क्षेत्रीय अंतर आ ही जाता है इसीलिए उन सभी की सूची यहाँ दी जा रही है उनके हिंदी पर्याय के साथ,ध्यान रहे कि क्रमवार सबसे प्रचिलित शब्द सबसे पहले है :
क्यों : किलै /क्यो
कब : कब
कैसे : कसि/ कसिक
कितने : कदुग
कौन : को
कहाँ : कॉ
किसलिए : किलै
किधर : काहुँ

वाक्य प्रयोग :

आपका नाम क्या है ?
तुमर नाम के छु ?

आप कहाँ रहते हैं ?
तुम का रूछा?

आप कैसे जाते हो ?
तुम कसी/ कसिक जाछा ?

वो कौन है ?
ऊ को छन?

तू कब सोयेगा ?
तु कब पड़ले ?

कितने आदमी थे ?
कदुग मैस/ आदिम छि?

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

जौनसारी भाषा

बहुत कम लोगों को ज्ञान है कि उत्तराखंड में गढ़वाली और कुमाऊनी के इतर भी कई भाषाएँ हैं ,जिनमें कई जनजातीय भाषाएँ भी हैं जैसे "मार्छा" ,"रं," "बोक्सा" ,"राजी"  आदि पर आज हम बात करेंगे जौनसारी भाषा की जो कि उत्तराखंड की सबसे बड़ी जनजातीय बोली है .वैसे यह अभी भी विवाद का विषय है कि जौनसारी एक स्वतंत्र भाषा है या गढ़वाली की ही एक उपबोली  है पर जो भी हो इतना तो तय है कि इस भाषा की अपनी कुछ विशिष्ट खासियते हैं.
जौनसार का प्रसिद्द महासू देवता का मंदिर 


यह भारतीय आर्य भाषा परिवार की बोली है और गियर्सन ने इसे पस्छिमी पहाड़ी वर्ग में रखा है. जौनसारी भाषा उत्तराखंड के देहरादून जिले के जौनसार क्षेत्र और (जिसमें जौनसार ,कलसी ,लाखामंडल और चकराता आता है) और उत्तरकाशी के कुछ इलाकों में बोली जाती है .जौनसारी की भी कई उपबोलियाँ मानी गई हैं जैसे कि बावरी, कंडवाणी आदि . जौनसारी की अपनी एक विशिष्ट बोली भी है जो कि वर्तमान में अधिक लोकप्रिय नहीं रह गई है ,इसका नाम है "बागोई"  अर्थात "भाग्य की बही"  पर ज्योतिष गर्न्थों के रूप में यह लिपि सुरक्षित है .इस लिपि का उद्गम स्थल कश्मीर माना जाता है और इसमें बारह स्वर और पैंतीस व्यंजन हैं .

परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि कालांतर में एनी बोलियों के समान ही जौनसारी भाषी अधिक लोग नहीं रह गए हैं ,नई पीढ़ी में अपनी इस पुरखों की पहचान की ओर



कम आकर्षण देखा गया है .पर हम सभी को यह ध्यान रखना चाहिये कि उत्तराखंडी भाषाओँ के पुष्प गुच्छ में जौनसारी नामक  फूल की अपनी एक विशिष्ट महक रहेगी .  

रविवार, 3 जुलाई 2011

स्थानों के नामों का गढ़वाली संस्करण

वैसे तो किसी भी स्थान/शहर/नगर का अपना एक मानक नाम होता है परन्तु उसके साथ ही कुछ अलग अलग क्षेत्रों में उसी स्थान विशेष के लिए थोड़े भिन्न नाम होते हैं उदहारणतः पूर्वांचल वाले वाराणसी को 'बनारस ' कह  कर ही बुलाएँगे और लखनऊ वाले दिल्ली को 'देहली ' कह कर ..ऐसे ही क्षेत्रीय रूप गढ़वाली में भी यहाँ के शहरों के लिए मिलते हैं और देश के कुछ बड़े शहरों के लिए भी .आइये कुछ उदाहरण देखते हैं :



गैर उत्तराखंडी नगर :


मुंबई/बम्बई      : बम्बै 
चेन्नई/मद्रास    : मद्रास
लखनऊ            : लखनौ 
कोलकाता         : कलकता 




उत्तराखंडी नगर :

देहरादून       : देरादूँण 
टिहरी          : टीरि
पौड़ी            : पौड़ि
उत्तरकाशी  : उतरकासी
गोपेश्वर      : गोपेसर
कोटद्वार    : क्वटदार
ऋषिकेश     : रिसकेस
हरिद्वार     : हरद्वार
श्रीनगर       : सिरनगर












     

    

शनिवार, 2 जुलाई 2011

गढ़वाली में प्रश्नवाचक वाक्य

गढ़वाली में वैसे तो कुछ प्रचिलित शब्द है प्रश्नवाचकों  के तौर पर उपयोग होने के लिए  ,पर फिर भी  उनमें क्षेत्रीय अंतर आ ही जाता है इसीलिए उन सभी की  सूची यहाँ दी जा रही है उनके हिंदी पर्याय के साथ,ध्यान रहे कि क्रमवार सबसे प्रचिलित शब्द सबसे पहले है  :

क्यों  : किलै /क्यो 
कब  : कैबेर/कैबर/कब 
कैसे  : कन/ कनकै/कन्क्वै  
कितने : कतका/कतुक/कतना 
कौन : को 
कहाँ : कख 
किसलिए : किलै 
किधर : कनै/कन्है

वाक्य प्रयोग :

आपका नाम क्या है ?
तुमर  नौ क्या च ?

आप कहाँ रहते हैं ?
तुम  कख रह्न्दो ?

आप कैसे जाते हो ?
तुम कनकै जंदो  ?

वो कौन है ?
वो को च ?

तू कब सोयेगा ?
तु कैबेर सेल ?

कितने आदमी थे ?
कतका आदिम छा ?